Supreme Court Decision – अगर आप भी मां-बाप हैं और सोचते हैं कि बुढ़ापे में बेटा-बेटी आपका सहारा बनेंगे, तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। और अगर आप खुद बेटे या बेटी हैं और सोचते हैं कि मां-बाप की प्रॉपर्टी तो आखिरकार आपकी ही होगी, तो संभल जाइए। अब सिर्फ औलाद होने से प्रॉपर्टी पर हक नहीं मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जो हर घर की हकीकत से जुड़ा है। कोर्ट ने साफ कहा है – अगर कोई बेटा या बेटी अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करता, उन्हें अकेला छोड़ देता है या उनके साथ बुरा बर्ताव करता है, तो उसे उनकी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा।
अब प्यार के बदले प्रॉपर्टी नहीं
अक्सर मां-बाप अपनी सारी जिंदगी की कमाई अपने बच्चों के नाम कर देते हैं, यह सोचकर कि बेटा-बेटी उनका ध्यान रखेंगे। लेकिन जब वही बच्चे मुंह मोड़ लेते हैं, तो मां-बाप के पास कुछ नहीं बचता – न घर, न सहारा। अब इस फैसले के बाद अगर बच्चों ने प्रॉपर्टी ले ली और फिर देखभाल नहीं की, तो माता-पिता उसे वापस ले सकते हैं।
गिफ्ट डीड भी अब रद्द हो सकती है
मान लीजिए आपने अपनी जमीन या मकान बेटे के नाम कर दिया है, लेकिन अब वो आपको पूछता तक नहीं। ऐसे में अब आप उस गिफ्ट डीड को रद्द करवा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई संतान अपने मां-बाप की देखरेख नहीं करती, तो माता-पिता को अधिकार है कि वो कोर्ट में जाकर संपत्ति वापस मांग सकें।
बुजुर्गों के लिए कानून बना ढाल
यह फैसला ‘वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007’ के तहत दिया गया है। इस कानून का मकसद यही है कि बुजुर्गों को सम्मान और सुरक्षा मिल सके। अगर मां-बाप यह साबित कर दें कि उनकी संतान उनकी परवाह नहीं कर रही है, तो वे कानूनी रूप से अपनी दी हुई संपत्ति को वापस पा सकते हैं।
बदतमीजी का सीधा मतलब – संपत्ति से बाहर
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता के साथ गाली-गलौज करता है, मानसिक या शारीरिक अत्याचार करता है, तो उसका संपत्ति पर कोई हक नहीं बनता। यह फैसला उन लोगों के लिए एक सीधा मैसेज है जो बुजुर्ग माता-पिता को बोझ समझते हैं और सिर्फ प्रॉपर्टी के लालच में उनसे रिश्ता बनाए रखते हैं।
पारिवारिक संतुलन का मजबूत कदम
ये फैसला न सिर्फ कानून की बात करता है बल्कि पारिवारिक रिश्तों को संभालने का भी तरीका है। इसमें बच्चों को समझाया गया है कि सिर्फ पैदा होकर मां-बाप की कमाई पर हक नहीं मिलता। उनकी सेवा करना, उनका सम्मान करना भी उतना ही जरूरी है।
आज की हकीकत को समझिए
आजकल बहुत से बुजुर्ग अकेले रह रहे हैं। बच्चे विदेश में हैं, या फिर साथ रहकर भी ध्यान नहीं रखते। ऐसे में ये कानून उनकी मदद करेगा। उन्हें अब डरने की जरूरत नहीं है। अगर उन्होंने कोई प्रॉपर्टी अपने बच्चों के नाम की है और अब वो उनका ख्याल नहीं रखते, तो वे उसे वापस ले सकते हैं।
ये फैसला क्यों है जरूरी?
- मां-बाप को बुढ़ापे में सहारा मिलेगा
- जो औलाद सिर्फ संपत्ति के लालच में रिश्ते निभाते हैं, उन्हें रोकने का रास्ता मिलेगा
- भारतीय परिवारों में रिश्तों की अहमियत दोबारा समझाई जाएगी
- बुजुर्गों को उनका हक मिलेगा और आत्मनिर्भरता महसूस होगी
ध्यान रखने वाली बातें
- अगर आपने किसी को प्रॉपर्टी दी है और अब वो ध्यान नहीं रख रहा, तो आप जिला मजिस्ट्रेट या ट्राइब्यूनल में अपील कर सकते हैं
- कोर्ट गिफ्ट डीड को रद्द कर सकता है
- इस प्रक्रिया के लिए वकील से सलाह लेना जरूरी है
मां-बाप सिर्फ जमीन-जायदाद नहीं होते। वो पूरी जिंदगी बच्चों को पालते हैं, सिखाते हैं, और तब जाकर कुछ जोड़ते हैं। ऐसे में जब उनका बुढ़ापा आए, तो बच्चों का फर्ज है कि उनकी देखभाल करें। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हमें यही समझाने आया है – पहले फर्ज निभाओ, फिर हक की बात करो।
तो अगर आप माता-पिता हैं और अब तक चुपचाप सहन कर रहे थे, तो अब आपके पास कानून का सहारा है। और अगर आप औलाद हैं, तो यह समझ लीजिए कि मां-बाप के दिल से जुड़िए, प्रॉपर्टी तो अपने आप ही मिल जाएगी।