Supreme Court Decision – अगर आप भी आज के वक्त में जी रहे हैं लेकिन सोच अभी भी वही पुरानी है कि बेटियां तो पराया धन होती हैं, तो अब ज़रा ठहरिए। देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने ना सिर्फ कानून की धाराओं में हलचल मचा दी है, बल्कि समाज की सोच को भी हिलाकर रख दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगर कोई हिंदू पिता बिना वसीयत के दुनिया से चला जाता है, तो उसकी संपत्ति में बेटी को बेटे की तरह बराबर का अधिकार मिलेगा। ये कोई मेहरबानी नहीं है, बल्कि बेटी का कानूनी हक है। चलिए आपको पूरी बात बताते हैं आसान भाषा में।
क्या था पूरा मामला?
एक पिता के निधन के बाद, उनके भाइयों के बेटे यानी भतीजों ने यह दावा कर दिया कि संपत्ति में उनका हक बनता है। उनका तर्क था कि बेटी तो शादी के बाद दूसरे घर चली जाती है, इसलिए उसे संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलना चाहिए।
मामला पहले मद्रास हाईकोर्ट तक गया, लेकिन वहां से बेटी को झटका लगा। हाईकोर्ट ने ये कह दिया कि चूंकि पिता ने कोई वसीयत नहीं बनाई थी और बेटी अकेली वारिस है, फिर भी उसे संपत्ति का हक नहीं मिलेगा।
लेकिन बेटी ने हार नहीं मानी और सीधे पहुंच गई सुप्रीम कोर्ट। और यहीं से सब कुछ बदल गया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जज एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्णा मुरारी थे, उन्होंने एकदम स्पष्ट और ठोस फैसला सुनाया। उन्होंने कहा –
- बेटी को पिता की संपत्ति में उतना ही हक मिलेगा जितना बेटे को मिलता है
- ये अधिकार सिर्फ पैतृक संपत्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि पिता की खुद की कमाई की संपत्ति पर भी लागू होता है
- अगर कोई वसीयत नहीं है, तो बेटी को ही सबसे पहले हकदार माना जाएगा
- पिता के भाई या उनके बच्चों का दावा बेटी के मुकाबले कमजोर होगा
कब से लागू होता है बेटी का हक?
ये अधिकार पिता की मृत्यु के साथ ही लागू हो जाता है। यानी अगर किसी पिता की मृत्यु हो जाती है और उन्होंने कोई वसीयत नहीं बनाई है, तो बेटी अपने आप उस संपत्ति की वारिस बन जाती है। इसके लिए यह शर्त नहीं है कि पहले कोई बेटा ना हो या कोई और पुरुष वारिस ना हो। बेटी खुद एक मजबूत और स्वतंत्र उत्तराधिकारी मानी जाएगी।
महिला की खुद की संपत्ति का क्या नियम है?
अब बात करते हैं महिला की अपनी संपत्ति की। अगर कोई हिंदू महिला बिना वसीयत बनाए गुजर जाती है, तो उसकी संपत्ति के बंटवारे का नियम यह होगा –
- अगर वो संपत्ति मायके से मिली है यानी पिता या मां से, तो वह संपत्ति वापस उसी परिवार को जाएगी जैसे भाई या बहन
- अगर संपत्ति पति या ससुराल से मिली है, तो वह पति के परिवार के लोगों को दी जाएगी
ये सब कुछ Hindu Succession Act की धारा 15(2) के तहत तय होता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि संपत्ति उसी परिवार में लौटे, जहां से वह आई थी।
क्यों खास है ये फैसला?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बदलाव की शुरुआत है। अब बेटियों को अपने हक के लिए लड़ना नहीं पड़ेगा, क्योंकि अब कानून उनके साथ है।
- अब बेटा और बेटी एक जैसे वारिस होंगे
- यह फैसला समाज की उस सोच को चुनौती देता है जो बेटियों को शादी के बाद गैर समझती है
- इस फैसले से लाखों बेटियों को कानूनी सहारा मिलेगा, जिन्हें अब तक सिर्फ इसलिए संपत्ति से बाहर कर दिया जाता था क्योंकि वो ‘लड़की’ थीं
पारिवारिक झगड़ों में आएगा बदलाव
आज भारत में सबसे ज्यादा झगड़े संपत्ति को लेकर होते हैं, खासकर जब बात बेटी की आती है। कई बार बेटी को यह कहकर हक से वंचित कर दिया जाता है कि उसका ससुराल है, उसे क्या जरूरत है। लेकिन अब ये नहीं चलेगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद निचली अदालतें भी इसी आधार पर फैसले देंगी। अब कोई भी पिता, भाई या रिश्तेदार यह तर्क नहीं दे पाएगा कि बेटी का कोई हक नहीं बनता।
कुछ जरूरी बातें
- अगर आप चाहते हैं कि आपकी संपत्ति खास किसी को मिले, तो बेहतर है कि समय रहते वसीयत बना लें
- अगर कोई वसीयत नहीं है, तो कानून के मुताबिक अब बेटी को बराबर का हिस्सा मिलेगा
- संपत्ति प्लानिंग करते समय महिला सदस्यों के अधिकारों को नज़रअंदाज़ ना करें
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन लाखों बेटियों के लिए उम्मीद की किरण है, जो अब तक अपने ही घर की संपत्ति से बेदखल कर दी जाती थीं। अब बेटियां सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, बल्कि अधिकार की पहचान बन चुकी हैं।
अगर आप एक बेटी हैं, तो जान लीजिए कि अब कानून आपके साथ है। और अगर आप एक पिता हैं, तो अपनी बेटी को उसका हक जरूर दीजिए। समय आ गया है कि समाज बेटियों को सिर्फ विदा करने का बोझ न समझे, बल्कि उन्हें वारिस की तरह अपनाए।