Son In Law Property Rights – हमारे समाज में दामाद को काफी इज्जत दी जाती है, उसे अक्सर बेटा मान लिया जाता है। शादी के बाद जब बेटी अपने ससुराल चली जाती है, तो उसका पति यानी दामाद ससुराल वालों के लिए परिवार जैसा ही बन जाता है। लेकिन क्या ये रिश्तेदारी और सम्मान उसे सास-ससुर की प्रॉपर्टी में कानूनी अधिकार भी दिला देता है? ये सवाल अब बहुत ज़रूरी हो गया है।
हाल ही में एक ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में पहुंचा जहां दामाद ने ससुर की प्रॉपर्टी पर हक जताया और कोर्ट ने इस पर बड़ा फैसला सुनाया। जानिए पूरा मामला क्या था और कोर्ट ने क्या कहा।
क्या था पूरा विवाद?
भोपाल के रहने वाले एक शख्स दिलीप मरमठ की शादी नारायण वर्मा की बेटी ज्योति से हुई थी। नारायण वर्मा ने शादी के बाद बेटी और दामाद को अपने घर में रहने दिया और ये भी तय हुआ कि दामाद उनके बुजुर्ग होने के चलते देखभाल भी करेगा। दिलीप ने दावा किया कि उसने ससुर के घर के निर्माण में 10 लाख रुपये लगाए हैं, और इसके सबूत में बैंक स्टेटमेंट भी कोर्ट में पेश किए।
सब ठीक चल रहा था, लेकिन फिर साल 2018 में ज्योति की एक हादसे में मौत हो गई। इसके बाद दिलीप ने दूसरी शादी कर ली और उसके बाद सब बदल गया। उसने अपने ससुर की देखभाल बंद कर दी, ना खाना दे रहा था, ना खर्चा। नारायण वर्मा की उम्र 78 साल है और उन्हें अपनी बीमार पत्नी की भी देखभाल करनी पड़ती थी।
बुजुर्ग ससुर ने मांगा इंसाफ
अब जब दिलीप ने सारा ध्यान हटाया, तो नारायण वर्मा ने मजबूरी में एसडीएम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम 2007’ के तहत केस किया। इस कानून का मकसद बुजुर्गों को उनके बच्चों या देखभाल करने वालों से न्याय दिलाना है।
कोर्ट ने पूरे मामले की जांच की और पाया कि दिलीप अब ना ससुर की देखभाल कर रहा है और ना ही अपने दायित्व निभा रहा है। ऐसे में कोर्ट ने आदेश दे दिया कि दिलीप को घर खाली करना पड़ेगा।
दामाद को नहीं मिला सहारा, हर जगह से झटका
दिलीप ने इस फैसले को कलेक्टर ऑफिस में चुनौती दी, वहां भी वही जवाब मिला – मकान खाली करो। उसने कहा कि उसने 10 लाख लगाए हैं, तो प्रॉपर्टी में उसका हक बनता है। लेकिन कलेक्टर ने साफ कहा कि उसने सिर्फ मदद की थी, मालिकाना हक तो कभी उसे ट्रांसफर हुआ ही नहीं।
इसके बाद दिलीप सीधे हाईकोर्ट पहुंच गया। यहां पर भी हाईकोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद दामाद की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने साफ कहा कि अगर कोई अपने दायित्व निभाता है तभी उसे परिवार में अधिकार मिलते हैं। सिर्फ पैसे देने से प्रॉपर्टी में हक नहीं मिल जाता।
हाईकोर्ट का फैसला – रिश्ते जिम्मेदारी के साथ चलते हैं
हाईकोर्ट ने कहा कि दिलीप का योगदान सिर्फ एक पारिवारिक सहयोग था, कानूनी मालिकाना हक नहीं। साथ ही कोर्ट ने ये भी जोड़ा कि बुजुर्ग नारायण वर्मा रिटायर्ड हैं, पेंशन पर हैं और अपनी पत्नी की देखभाल कर रहे हैं, तो ऐसे समय में उन्हें अपने ही घर से निकाला नहीं जा सकता। कोर्ट ने दिलीप को एक महीने में घर खाली करने का आखिरी मौका दिया।
क्या सीख मिलती है इस मामले से?
देखा जाए तो ये मामला सिर्फ एक फैमिली डिस्प्यूट नहीं था, बल्कि कानूनी और सामाजिक स्तर पर बहुत कुछ सिखा गया। पहली बात तो ये कि रिश्ते जिम्मेदारी के साथ टिकते हैं। अगर कोई सिर्फ हक चाहता है लेकिन जिम्मेदारी से मुंह मोड़े, तो उसे वो अधिकार नहीं मिल सकते।
दूसरी बड़ी बात ये कि अगर आपने परिवार के लिए कुछ खर्च किया है तो उसे लिखित में लें। बिना एग्रीमेंट सिर्फ मुँह की बात पर भरोसा करना भारी पड़ सकता है।
तीसरा, वरिष्ठ नागरिकों के पास अब कानून है जो उन्हें सुरक्षा देता है। अगर कोई बुजुर्ग महसूस करता है कि उसके साथ अन्याय हो रहा है, तो वह ‘भरण-पोषण अधिनियम’ के तहत कोर्ट में आवाज उठा सकता है।
क्या दामाद को सास-ससुर की प्रॉपर्टी में हिस्सा मिलता है?
कानून के अनुसार नहीं। दामाद को सास-ससुर की संपत्ति में कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता। अगर सास-ससुर अपनी मर्जी से दामाद को कुछ देना चाहें, तो दे सकते हैं, लेकिन ऐसा कोई कानूनी नियम नहीं है जो कहता हो कि दामाद को हिस्सा मिलेगा।
रिश्तों में सम्मान जरूरी है, लेकिन सम्मान का मतलब कानूनी हक नहीं होता। अगर आप अपने ससुराल वालों की मदद करते हैं, तो उसे दस्तावेज़ों में दर्ज कराएं। और अगर किसी बुजुर्ग को परेशानी है, तो कानून उनके साथ है – बस हिम्मत से आगे बढ़िए।