माता-पिता की सेवा न करने पर छिन सकता है संपत्ति का हक – सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला SC Decision On Property Rights

By Prerna Gupta

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SC Decision On Property Rights

SC Decision On Property Rights – अगर आप भी अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर रहे हैं और सोच रहे हैं कि उनके नाम की प्रॉपर्टी आपके पास आराम से आ जाएगी, तो अब होशियार हो जाइए। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसने उन बच्चों को सीधी चेतावनी दे दी है जो माता-पिता से ज़मीन-जायदाद तो ले लेते हैं लेकिन बाद में उन्हें पूछते भी नहीं।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, हमारे समाज में एक आम चलन बन गया है कि माता-पिता अपने बच्चों के नाम संपत्ति कर देते हैं – कभी प्यार से, तो कभी दबाव में। लेकिन जैसे ही संपत्ति ट्रांसफर होती है, कई बार वही बच्चे अपने मां-बाप की देखभाल से मुंह मोड़ लेते हैं। ना खाने-पीने का ध्यान, ना इलाज की चिंता और ना ही कोई इमोशनल सपोर्ट।

इसी गंभीर मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया कि अगर कोई संतान अपने माता-पिता की ठीक से देखभाल नहीं करती, तो उसे उस प्रॉपर्टी से भी हाथ धोना पड़ेगा। यानी अब संपत्ति का हक तभी मिलेगा, जब बच्चों की जिम्मेदारी निभाओगे।

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क्या कहता है कोर्ट का फैसला?

कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर प्रॉपर्टी पहले ही ट्रांसफर हो चुकी है, तो भी माता-पिता उसे वापस ले सकते हैं – लेकिन तभी, जब वो ये साबित कर पाएं कि उनके साथ दुर्व्यवहार या उपेक्षा हो रही है। ये फैसला उन लाखों बुजुर्गों के लिए एक राहत की खबर है जो अपने बच्चों के भरोसे जी रहे हैं।

बुजुर्गों के लिए बना है कानून भी

ये पूरा मामला ‘वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम’ के तहत आता है। इस कानून के मुताबिक, बच्चों पर अपने माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी होती है – वो भी सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि भावनात्मक और शारीरिक रूप से भी।

अगर कोई बच्चा अपनी इस जिम्मेदारी से भागता है, तो माता-पिता को यह हक है कि वो दी गई संपत्ति को रद्द करवा सकें। कोर्ट के इस फैसले से अब यह और मजबूत हो गया है कि यह नियम सिर्फ नई प्रॉपर्टी पर ही नहीं, बल्कि पहले से दी गई प्रॉपर्टी पर भी लागू होगा।

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अब प्रॉपर्टी ट्रांसफर होगा शर्तों के साथ

इस फैसले के बाद अब जो भी माता-पिता प्रॉपर्टी अपने बच्चों के नाम करेंगे, वे एक शर्त के साथ करेंगे – कि बेटा या बेटी उनकी देखभाल करेगा। इसमें उनकी सेहत का ख्याल रखना, दिनचर्या की जरूरतें पूरी करना और भावनात्मक साथ देना शामिल होगा।

अगर बच्चे इनमें से किसी भी चीज में कोताही बरतते हैं, तो माता-पिता संपत्ति को वापस ले सकते हैं। यानी अब संपत्ति का मतलब सिर्फ जमीन-जायदाद नहीं, एक जिम्मेदारी भी है।

सामाजिक असर भी है इस फैसले का

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला सिर्फ कानून की किताबों तक सीमित नहीं रहेगा। इससे समाज को भी एक बड़ा संदेश मिलेगा – कि मां-बाप की सेवा अब सिर्फ एक ‘संस्कार’ नहीं, बल्कि कानूनन जरूरी भी है। अब वो समय चला गया जब बच्चे प्रॉपर्टी लेकर माता-पिता को अकेला छोड़ देते थे।

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ये फैसला समाज में फैली उस सोच पर भी चोट करता है जहां बुजुर्गों को बोझ समझा जाता है। अब बच्चों को ये बात समझनी पड़ेगी कि अगर उन्होंने अपने फर्ज नहीं निभाए, तो उन्हें कानूनी रूप से भी नुकसान उठाना पड़ेगा।

बुजुर्ग अब डरें नहीं, कदम उठाएं

अगर आप एक बुजुर्ग हैं और सोचते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता, तो यह फैसला आपके लिए उम्मीद की किरण है। अगर आपने अपने बेटे या बेटी को संपत्ति दी है और वो अब आपकी देखभाल नहीं कर रहा, तो आप अपने अधिकार के लिए कोर्ट जा सकते हैं। इसके लिए आपको किसी बड़े वकील की जरूरत नहीं, बल्कि सिर्फ थोड़ी जानकारी और हिम्मत चाहिए।

क्या सीख मिलती है इस फैसले से?

साफ बात है – संपत्ति के बदले सेवा जरूरी है। अब सिर्फ प्यार या विश्वास पर बच्चों को संपत्ति देना समझदारी नहीं है। माता-पिता को अब ट्रांसफर से पहले एक सही समझौता करना चाहिए, जिसमें साफ लिखा हो कि कौन क्या करेगा।

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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने माता-पिता को एक नई ताकत दी है। अब उन्हें डरने की जरूरत नहीं कि बच्चे उन्हें छोड़ देंगे। और बच्चों को भी समझ लेना चाहिए कि अगर उन्होंने अपने फर्ज नहीं निभाए, तो न रिश्ते बचेंगे और न ही प्रॉपर्टी।

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