Matrimonial Property – अगर आपने खून-पसीने की कमाई से एक घर खरीदा है और सोचते हैं कि ये सिर्फ आपका है क्योंकि आपने पैसे दिए हैं, तो थोड़ा रुकिए। सुप्रीम कोर्ट का हाल ही में आया एक बड़ा फैसला आपके इस भरोसे पर पानी फेर सकता है।
अब ऐसा नहीं चलेगा कि प्रॉपर्टी सिर्फ नाम के आधार पर आपकी मानी जाए। कोर्ट ने साफ कह दिया है कि अगर पत्नी ने भी घर संभालने, बच्चों की देखभाल करने और आपके सपोर्ट में योगदान दिया है, तो वो भी उस प्रॉपर्टी की हिस्सेदार मानी जाएगी – चाहे उसका नाम रजिस्ट्री में हो या ना हो।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि अगर पति ने शादी के बाद कमाई से कोई प्रॉपर्टी खरीदी है और पत्नी ने घरेलू जिम्मेदारियां निभाईं हैं, तो उस प्रॉपर्टी पर पत्नी का भी अधिकार बनता है। मतलब साफ है – सिर्फ पैसे खर्च करने से मालिकाना हक नहीं बनता, घरेलू कामकाज भी एक बराबर योगदान माना जाएगा।
क्या होती है Matrimonial Property?
ये शब्द सुनने में थोड़ा भारी लगता है लेकिन मतलब बहुत सिंपल है। शादी के बाद जो भी प्रॉपर्टी खरीदी जाती है – चाहे वो घर हो, जमीन, गाड़ी, बैंक अकाउंट, ज्वाइंट FD या कोई भी इन्वेस्टमेंट – और चाहे किसी एक के नाम पर हो, अगर दोनों ने उसमें किसी भी तरह से योगदान दिया हो, तो वो matrimonial property कहलाती है।
क्यों है ये फैसला इतना जरूरी?
अब तक ज्यादातर लोग सोचते थे कि जिसके नाम रजिस्ट्री है, वही मालिक है। लेकिन अब कोर्ट ने इस सोच को बदल दिया है। अब पत्नी अगर हाउसवाइफ भी है और उसने घर-परिवार संभालकर पति को फोकस करने दिया, तो वो भी मालिकाना हक की हकदार है।
महिलाओं को क्यों मिला ये अधिकार?
देखा जाए तो भारतीय समाज में बहुत सारी महिलाएं शादी के बाद अपने सपने छोड़कर सिर्फ घर-परिवार को संभालती हैं। न नौकरी करती हैं, न अपनी कोई इनकम होती है, लेकिन दिन-रात मेहनत करके पति-बच्चों की जिंदगी आसान बनाती हैं। कोर्ट ने अब इस ‘अदृश्य मेहनत’ को भी योगदान मान लिया है।
कानूनी सपोर्ट भी पूरा
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के सेक्शन 27 में ये साफ है कि शादी के दौरान बनी संपत्ति का निपटारा किया जा सकता है।
- CPC (सिविल प्रक्रिया संहिता) के तहत कोर्ट बंटवारा कर सकता है।
- और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी matrimonial property की परिभाषा को स्वीकार कर लिया है।
कौन-कौन सी चीजें आ सकती हैं इस दायरे में?
- शादी के बाद खरीदा गया मकान या फ्लैट
- गाड़ी
- ज्वाइंट अकाउंट, FD
- गहने, महंगे सामान
- म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस, शेयर आदि
अब सवाल उठता है – पुरुष क्या करें?
- शादी से पहले की प्रॉपर्टी का रिकॉर्ड रखें – अगर आपने पहले कुछ खरीदा है तो उसके पेपर, तारीख और रजिस्ट्री संभालकर रखें।
- ज्वाइंट इन्वेस्टमेंट सोच-समझकर करें – जरूरत ना हो तो साझा नाम पर चीजें ना लें।
- साफ-साफ एग्रीमेंट बनवाएं – अगर शादी के बाद प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो उसमें ये साफ हो कि किसने कितना पैसा लगाया है।
- गिफ्ट डीड देने से पहले सोचें – कई लोग प्यार में आकर प्रॉपर्टी गिफ्ट कर देते हैं, लेकिन बाद में पछताना पड़ सकता है।
इस फैसले का असर किन पर पड़ेगा?
- वो पुरुष जो तलाक की प्रक्रिया में हैं
- जिनकी प्रॉपर्टी शादी के बाद खरीदी गई है
- जिनकी पत्नी घर के काम में सहयोगी रही है
- जिनके पास किसी तरह का क्लियर एग्रीमेंट नहीं है
अब संपत्ति सिर्फ नाम से आपकी नहीं मानी जाएगी। अगर पत्नी ने भी साथ निभाया है, घर चलाया है, तो उसका भी उस संपत्ति में हक होगा। और भाई, कोर्ट का ये फैसला सिर्फ एक केस के लिए नहीं, पूरे सिस्टम के लिए मिसाल बन गया है।
तो क्या करें?
समझदारी यही है कि शादी के बाद अगर प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं, तो सब कुछ डॉक्युमेंट में क्लियर करें। एग्रीमेंट बना लें, पैसे के सोर्स साफ रखें और अगर चाहें तो लीगल सलाह भी ले लें। भविष्य में कोई कानूनी पचड़े में ना फंसना पड़े, तो अभी से सतर्क रहें।