Government Officer Case Permission – अगर आपको कभी किसी सरकारी अफसर के खिलाफ कोई शिकायत करनी हो या कोर्ट में केस दायर करना हो, तो एक बात जरूर जान लीजिए – अब बिना सरकार की इजाजत ऐसा करना आसान नहीं है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसला सुनाया है, जिससे अब यह साफ हो गया है कि सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा दर्ज करने से पहले किसकी अनुमति लेनी होगी और कब यह जरूरी नहीं है।
चलिए इस पूरे मामले को आसान भाषा में समझते हैं – किस पर ये नियम लागू होता है, क्या है कानून और आम जनता को इसमें क्या समझना चाहिए।
क्यों खास होता है सरकारी अफसर पर केस?
सरकारी अफसर या कर्मचारी अक्सर ऐसे फैसले लेते हैं जो आम लोगों से सीधे जुड़े होते हैं – चाहे वो किसी योजना की मंजूरी हो, नियमों का पालन कराना हो या फिर प्रशासनिक कार्रवाई। कई बार किसी के हित में तो किसी के खिलाफ फैसला भी लेना पड़ता है। ऐसे में अगर हर किसी को सीधे केस करने की आज़ादी हो जाए, तो अफसर अपना काम करने से डरेंगे, जिससे पूरे सिस्टम पर असर पड़ेगा।
इसलिए कानून ने ऐसे मामलों के लिए कुछ विशेष सुरक्षा दी है।
किस कानून में है ये प्रावधान?
भारतीय कानून में CrPC यानी आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 में साफ लिखा है कि अगर कोई सरकारी अफसर अपने अधिकारिक कामकाज के दौरान कोई फैसला लेता है और उसी पर किसी को आपत्ति है, तो उस अफसर पर केस चलाने से पहले सरकार से इजाजत लेना जरूरी है।
मतलब यह कि बिना पूर्व अनुमति, कोर्ट ऐसे केस को सीधे मंजूरी नहीं दे सकता।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक केस में यह साफ कर दिया कि अगर सरकारी अफसर ने अपने ड्यूटी के तहत कोई निर्णय लिया है, तो उसके खिलाफ केस करने से पहले सरकार की परमिशन जरूरी होगी। अगर कोई केस बिना सरकार की अनुमति दर्ज किया गया है, तो कोर्ट उसे खारिज कर सकता है।
इससे लाखों ईमानदार सरकारी अफसरों को राहत मिलेगी, जो अक्सर झूठे केसों में फंस जाते हैं।
यह मामला कैसे सामने आया?
एक सरकारी अफसर ने अपने विभाग के तहत एक आदेश पारित किया। लेकिन उस फैसले से नाराज होकर किसी ने उनके खिलाफ केस कर दिया। केस पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा – जब तक सरकार से इजाजत नहीं ली जाती, तब तक इस केस पर सुनवाई नहीं हो सकती।
अनुमति कौन देता है?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि अफसर किस स्तर पर है:
- अगर अफसर केंद्र सरकार के अधीन है, तो केंद्र से अनुमति लेनी होगी।
- अगर राज्य सरकार के अधीन है, तो राज्य सरकार से अनुमति जरूरी है।
- कुछ मामलों में जिला कलेक्टर या विभाग प्रमुख को भी अनुमति देने का अधिकार होता है।
कब नहीं चाहिए इजाजत?
यह नियम हर हाल में लागू नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर अफसर ने कोई गलत काम अपने निजी स्वार्थ में किया हो, तो सरकार की इजाजत जरूरी नहीं है।
जैसे:
- अगर कोई अफसर रिश्वत लेते पकड़ा जाए।
- किसी ने जानबूझकर किसी को नुकसान पहुंचाया हो।
- अफसर ने ऐसा कोई काम किया हो जो उसकी ड्यूटी का हिस्सा नहीं था।
ऐसे मामलों में कोर्ट खुद ही केस स्वीकार कर सकता है।
FIR के लिए क्या नियम है?
अगर मामला बेहद गंभीर हो और सरकारी ड्यूटी से न जुड़ा हो, तो FIR दर्ज करने के लिए इजाजत की जरूरत नहीं। लेकिन अगर आरोप सरकारी काम से सीधे जुड़े हों, तो पहले सरकार से अनुमति जरूरी होगी।
क्या यह अफसरों को छूट देता है?
नहीं, यह सिर्फ ईमानदार अफसरों को बेवजह परेशान होने से बचाता है। अगर कोई अफसर अपने पावर का गलत इस्तेमाल करता है या कानून तोड़ता है, तो यह सुरक्षा ढाल काम नहीं आएगी। कोर्ट ने साफ कहा कि गलत करने वालों को कानून का डर जरूर रहना चाहिए।
जनता को क्या समझना चाहिए?
अगर आप किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ कोई केस या शिकायत करना चाहते हैं, तो सबसे पहले यह देखें कि मामला उनके सरकारी काम से जुड़ा है या निजी गलती से। अगर वो काम उनके ड्यूटी का हिस्सा था, तो पहले सरकार की मंजूरी जरूरी होगी। वरना केस खारिज हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला बहुत अहम है। इससे साफ हो गया है कि अगर कोई सरकारी अफसर अपने कर्तव्यों के तहत कोई निर्णय लेता है, तो उस पर केस करने के लिए सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य है। लेकिन अगर मामला भ्रष्टाचार, निजी दुश्मनी या जानबूझकर की गई गलती का है, तो बिना अनुमति भी कार्रवाई हो सकती है।
यह फैसला अफसरों और आम जनता – दोनों के लिए जरूरी जानकारी है ताकि कोई भी अज्ञानता में कानून का गलत उपयोग न करे।