Daughter Rights In Agriculture Land – हमारे देश में बेटियों के हक को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं। खासकर जब बात जमीन-जायदाद की हो, तो अब भी बहुत से लोग ये मानते हैं कि शादी के बाद बेटी का मायके की प्रॉपर्टी से कोई लेना-देना नहीं होता। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस सोच पर एक मजबूत तमाचा मारा है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि बेटी का अधिकार उतना ही मजबूत है जितना बेटे का, चाहे वो शादीशुदा हो या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का सीधा फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम केस की सुनवाई के दौरान ये कहा कि अगर संपत्ति पैतृक है यानी पुश्तैनी जमीन है, तो बेटी को भी बराबर का अधिकार मिलेगा। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 के तहत बेटी भी पिता की संपत्ति में उतनी ही हकदार है जितना बेटा। और ये हक शादी के बाद भी बरकरार रहता है। शादी हो जाने से बेटी “घर की नहीं रही” – ऐसी सोच अब कानून में नहीं चलने वाली।
क्या खेती की जमीन पर भी हक है?
यह सवाल भी कई बार पूछा जाता है कि क्या यह नियम सिर्फ मकान और शहर की प्रॉपर्टी पर लागू होता है या खेती की जमीन पर भी। तो जवाब है – हां, अगर खेती की जमीन भी पैतृक है, तो बेटी को उस पर भी बराबर का हिस्सा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात साफ तौर पर कही है कि यह हक हर तरह की पैतृक संपत्ति पर लागू होता है।
एक उदाहरण से समझिए
मान लीजिए आपके पिता के पास 12 एकड़ खेती की जमीन है और उनके तीन बच्चे हैं – दो बेटे और एक बेटी। तो उस 12 एकड़ में से हर किसी को 4 एकड़ जमीन का हक मिलेगा। बेटी को यह हक सिर्फ इसलिए नहीं छिन सकता कि उसकी शादी हो चुकी है।
क्या भाई की इजाजत जरूरी है?
यह बहुत आम धारणा है कि अगर भाई राज़ी हो तो ही बहन को हिस्सा मिलेगा। लेकिन असलियत ये है कि कानून को भाई की इजाजत की कोई जरूरत नहीं है। बेटी अगर अपना हिस्सा मांगती है और भाई मना करता है, तो वह कोर्ट जा सकती है और वहां से अपना कानूनी हक हासिल कर सकती है।
अगर नाम रिकॉर्ड में नहीं है तो?
कई बार ऐसा होता है कि जमीन के सरकारी रिकॉर्ड – जैसे खसरा या खतौनी – में बेटी का नाम नहीं होता। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उसका हक खत्म हो गया। वो एसडीएम ऑफिस या तहसील में जाकर शिकायत कर सकती है और जरूरत पड़ने पर कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकती है। उसके पास सही कागज़ात और कानूनी आधार होना जरूरी है।
क्या अपनी जमीन बेटी बेच सकती है?
बिलकुल। अगर बेटी को उसका कानूनी हिस्सा मिल चुका है, तो वह उस जमीन को बेचना चाहें, तो पूरी आज़ादी है। वो उस जमीन की मालिक बन जाती है और मालिक के तौर पर उससे जुड़ा कोई भी निर्णय लेने का हक उसके पास होता है – चाहे बेचना हो, किराए पर देना हो या खुद खेती करना हो।
अगर पिता ने वसीयत नहीं बनाई हो?
यह स्थिति भी बहुत आम है। अगर पिता ने कोई वसीयत नहीं बनाई है, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के मुताबिक संपत्ति का बंटवारा होगा। ऐसे में बेटी को भी उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना बेटे को। और अगर कोई उसे सिर्फ इस आधार पर बाहर करने की कोशिश करता है कि “वसीयत नहीं थी”, तो वो पूरी तरह गैरकानूनी है।
बेटियों को जागरूक होना जरूरी
अब वक्त आ गया है कि बेटियां अपने हक को लेकर पूरी तरह से जागरूक हों। कई बार वे सिर्फ इसलिए पीछे हट जाती हैं कि घर में कलह न हो या उन्हें लगता है कि कोर्ट-कचहरी में बहुत खर्चा हो जाएगा। लेकिन ये सिर्फ डर है। अगर दस्तावेज पक्के हैं और मामला पैतृक संपत्ति का है, तो कोर्ट बेटी का साथ देगा।
समाज को भी बदलना होगा
ये फैसला सिर्फ एक बेटी के हक की बात नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश है कि अब समय बदल चुका है। अब बेटियों को “पराया धन” समझने का वक्त चला गया। कानून ने उन्हें बराबरी का दर्जा दिया है और अब समाज को भी इसे स्वीकार करना होगा।
साफ बात है – बेटी चाहे शादीशुदा हो या ना हो, अगर जमीन पैतृक है, तो उसे भी उतना ही हक मिलेगा जितना बेटे को। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में एक बड़ा कदम है। अगर आप या आपकी किसी जानने वाली को ऐसे हक से वंचित किया जा रहा है, तो डरें नहीं – कागज़ तैयार करें, सलाह लें और कानून के रास्ते पर आगे बढ़ें। हक मांगना गुनाह नहीं, बल्कि समझदारी है।
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