संविदा कर्मियों के लिए खुशखबरी! हाईकोर्ट ने दिया नियमित करने का बड़ा आदेश Contract Employees Regularization News

By Prerna Gupta

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Contract Employees Regularization News

Contract Employees Regularization News – अगर आप लंबे समय से संविदा यानी कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं और उम्मीद लगाए बैठे हैं कि एक दिन आपकी नौकरी भी रेगुलर हो जाएगी, तो अब आपके लिए राहत की खबर है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है, जिससे हजारों संविदा कर्मियों को सीधा फायदा हो सकता है।

इस फैसले में कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर कोई कर्मचारी लगातार काम कर रहा है और उसकी सेवा में कोई जानबूझकर ब्रेक नहीं दिया गया है, तो उसे नियमित यानी रेगुलर किया जाना चाहिए। खास बात यह है कि कोर्ट ने यह बात एक विशेष अपील की सुनवाई के दौरान कही, जिसमें आगरा के एक सरकारी उद्यान में काम कर रहे संविदा माली अपनी नौकरी को स्थायी करवाने के लिए लड़ाई लड़ रहे थे।

क्या कहा कोर्ट ने?

इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी शामिल थे, ने ये फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि जो कर्मचारी लंबे समय से लगातार सेवा दे रहे हैं, उन्हें सरकारी सेवा में रेगुलर होने का पूरा हक है। सिर्फ इसलिए उन्हें बाहर नहीं किया जा सकता कि वे संविदा पर नियुक्त हुए थे।

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किस केस पर हुआ ये फैसला?

ये मामला था आगरा के सरकारी उद्यान में माली के पद पर काम कर रहे महावीर सिंह और उनके पांच साथियों का। इन सभी ने 1998 से 2001 के बीच संविदा पर काम शुरू किया था और तब से आज तक लगातार सेवा कर रहे थे। इन्होंने 2016 में जारी अधिसूचना के तहत रेगुलर होने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उनका आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया गया कि उनकी सेवा में निरंतरता नहीं थी।

लेकिन कोर्ट ने क्या माना?

कोर्ट ने कहा कि अगर कर्मचारी ने वाकई लगातार सेवा दी है और बीच में जो भी ब्रेक हुआ है वह जानबूझकर नहीं बल्कि विभाग द्वारा दिया गया हो या कोई जरूरी कारण रहा हो, तो उसे कृत्रिम ब्रेक (Artificial Break) माना जाएगा और इससे कर्मचारी के रेगुलर होने के अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

कोर्ट ने चयन समिति को दोबारा पूरे मामले पर विचार करने के लिए कहा है और निर्देश दिए हैं कि याचिकाकर्ताओं की बातों को ध्यान से सुनते हुए नए सिरे से फैसला लिया जाए।

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संविदा कर्मचारियों के लिए क्या मायने हैं इस फैसले के?

यह फैसला उन सभी कर्मचारियों के लिए उम्मीद की किरण है जो सालों से सरकारी विभागों में संविदा पर काम कर रहे हैं, लेकिन अब तक रेगुलर नहीं हो पाए हैं। कोर्ट का कहना है कि संविदा कर्मचारियों को भी बराबरी का मौका मिलना चाहिए, खासकर तब जब उन्होंने लम्बे समय तक ईमानदारी से काम किया है।

इसके साथ कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि विभाग खुद कर्मचारियों को किसी कारण से काम करने से रोकता है, तो उस वजह से उनकी सेवा को बाधित नहीं माना जाएगा।

पुरानी अधिसूचना पर भी सवाल

याचिकाकर्ताओं ने ये भी तर्क दिया था कि 12 सितंबर 2016 की अधिसूचना के आधार पर उन्होंने रेगुलर होने का आवेदन दिया था, लेकिन विभाग ने उनकी सेवाओं में निरंतरता नहीं मानते हुए उनका आवेदन खारिज कर दिया। कोर्ट ने इसपर भी सवाल उठाए और कहा कि जब तक नियमों में “निरंतर सेवा” की शर्त को सही तरीके से लागू नहीं किया जाता, तब तक यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

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विभाग का क्या कहना था?

विभाग की तरफ से कहा गया कि कर्मचारियों की सेवा में लगातार ब्रेक रहा है और वह समय-समय पर छुट्टी पर भी गए थे, इसलिए उन्हें रेगुलर नहीं किया जा सकता। लेकिन कोर्ट ने यह दलील मानने से इनकार कर दिया और कहा कि जब सेवा निरंतर रूप से चल रही हो और कर्मचारी अपनी मर्जी से छुट्टी पर न गया हो, तब उसे अवरोध नहीं माना जा सकता।

अब आगे क्या?

अब चयन समिति को दोबारा कर्मचारियों की याचिका पर विचार करना होगा। अगर सबकुछ ठीक रहा, तो ये कर्मचारी जल्द ही रेगुलर हो सकते हैं।

ये फैसला उन हजारों संविदा कर्मचारियों के लिए मिसाल बन सकता है जो सालों से सरकारी विभागों में मेहनत कर रहे हैं, लेकिन नौकरी की स्थायित्व की उम्मीद अब तक अधूरी थी। हाई कोर्ट ने यह बता दिया है कि अगर कोई कर्मचारी लगातार काम कर रहा है, तो उसे रेगुलर होने से रोका नहीं जा सकता।

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