Mother Rights On Sons Property – भारत में अक्सर पारिवारिक विवादों की जड़ पैसा और संपत्ति ही होती है। खासकर जब बेटे की शादी हो जाती है, तो सवाल उठता है कि उसकी कमाई और संपत्ति पर हक किसका है — मां का या फिर बहू का? ये सवाल सुनने में भले ही घरेलू लगे, लेकिन इसकी जड़ें काफ़ी गहरी हैं और कानून से जुड़ी हुई हैं। अगर आप भी ऐसे किसी सवाल से उलझे हुए हैं, तो चलिए आज आपको आसान और साफ़ भाषा में इस पूरे मामले की कानूनी तस्वीर दिखाते हैं।
बेटा कमाता है तो क्या मां का अधिकार बनता है?
हां, कानून कहता है कि जब बेटा कमाने लगता है, तो उसका फर्ज़ बनता है कि वो अपने माता-पिता की देखभाल करे। खासकर मां की जरूरतें पूरी करना उसका कर्तव्य है। अगर मां की कोई आमदनी नहीं है और वो बेटे पर आश्रित है, तो मां बेटे से खर्च मांग सकती है।
अगर बेटा मां की देखभाल नहीं करता, तो मां कोर्ट में जाकर भरण-पोषण की मांग कर सकती है। इसके लिए वह Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 के तहत शिकायत दर्ज कर सकती है। कोर्ट हालात देखकर फैसला लेता है और बेटा मां को हर महीने खर्च देने के लिए मजबूर हो सकता है।
बहू का क्या हक बनता है पति की कमाई पर?
कानून के मुताबिक, पति की कमाई पर बहू का सीधा हक नहीं होता। लेकिन अगर बात तलाक या पति की मृत्यु की हो, तो बहू यानी पत्नी को पति की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत पत्नी को पति के घर में रहने का अधिकार जरूर मिलता है।
लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि यह हक मां के अधिकार को खत्म नहीं करता। यानी मां और बहू, दोनों का घर में अपना-अपना हक बना रहता है, बशर्ते घर बेटे की कमाई या पुश्तैनी संपत्ति से जुड़ा हो।
अगर घर संयुक्त परिवार का है तो स्थिति कैसी होती है?
भारत में आज भी बहुत सारे लोग संयुक्त परिवार में रहते हैं, जहां सभी एक साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं। अगर घर पुश्तैनी है यानी दादा-दादी या पिता के समय से चला आ रहा है, तो उसमें मां का हक बनता है। वहीं बहू को भी पति के रहते उस घर में रहने का अधिकार है।
अगर बेटा अपनी कमाई से अलग घर खरीदता है और मां उसके साथ नहीं रहती, तब भी मां भरण-पोषण की मांग कर सकती है। लेकिन उस नए घर में मां का कानूनी हक तभी बनता है जब वह उस घर में रहती हो या घर पुरानी साझा संपत्ति में से खरीदा गया हो।
कोर्ट का क्या कहना है?
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई फैसलों में ये साफ किया गया है कि बेटा अपने माता-पिता की देखभाल करने के लिए बाध्य है। वहीं पत्नी को अपने पति के घर में रहने का पूरा अधिकार है। अगर पति उसे घर से निकालने की कोशिश करता है, तो पत्नी कोर्ट में जाकर घरेलू हिंसा कानून के तहत सुरक्षा की मांग कर सकती है।
मगर मां और बहू के झगड़े की स्थिति में कोर्ट दोनों पक्षों की बात सुनकर फैसला देता है। कोई एक पक्ष घर खाली करने को मजबूर नहीं किया जा सकता जब तक कि कोर्ट का फैसला न हो।
मां को बेटे की कमाई से कैसे मिल सकता है हक?
अगर बेटा मां को खर्च नहीं दे रहा, तो मां जिला मजिस्ट्रेट के पास आवेदन देकर भरण-पोषण की मांग कर सकती है। इसके लिए मां को साबित करना होगा कि वो बेटा की आमदनी पर निर्भर है और खुद के पास कमाई का कोई जरिया नहीं है।
क्या बहू मां को घर से निकाल सकती है?
कई बार टीवी सीरियल्स या हकीकत में ये देखने को मिलता है कि बहू सास से झगड़ा करती है और उसे घर से निकालने की कोशिश करती है। लेकिन कानून ये कहता है कि अगर घर बेटे की है और मां वहां रह रही है, तो बहू उसे घर से नहीं निकाल सकती। मां को अपने बेटे के घर में रहने का पूरा अधिकार है।
संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा?
अगर बेटा खुद की कमाई से संपत्ति खरीदता है तो वो सेल्फ-एक्वायर्ड मानी जाती है। इस पर बेटे की मृत्यु के बाद पत्नी और बच्चों का हक बनता है। मां का इस पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता, लेकिन अगर संपत्ति पुश्तैनी है, तो मां को भी बराबर का हिस्सा मिलेगा।
साफ है कि मां और बहू, दोनों की स्थिति अलग है लेकिन उनका अधिकार कानूनी रूप से तय है। मां को बेटे से खर्च मांगने का हक है और बहू को पति के घर में रहने का अधिकार है। संपत्ति, घर और खर्च को लेकर अगर कोई विवाद हो जाए, तो मामला कोर्ट तक जा सकता है, जहां पूरे केस की स्थिति देखकर ही फैसला होता है।
इसलिए समझदारी इसी में है कि आपसी बातचीत से मसले सुलझाए जाएं। जरूरत पड़े तो कानूनी सलाह लें, लेकिन रिश्तों को विवाद में तब्दील न होने दें। समझदारी और सम्मान दोनों से परिवार मजबूत बनता है।